सबसे पहले निशांत की बात सुनिए, मैंने अपने जीवन में कई ऐसे मौकें देखे हैं जब मीडिया ने अपनी उठाई गई आवाज़ के बल पर किसी भी विवाद को उजागर करने का प्रयास किया है। मगर क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि जो आवाज उठाई जा रही है वो सच में निष्पक्ष है? क्या मीडिया ने किसी विचारधारा, दल, या सोच के प्रति अपना पक्ष लिए बिना ही विवाद की पेशकश की है? सच्चाई यह है कि मैंने अपने करियर के दौरान ऐसे कई मामलों का सामना किया है जिसमें मीडिया ने खुद को संतुलित रखने के बजाय किसी एक पक्ष की ओर झुककर अपने दिखावे की पेशकश की है।
एक बार ध्यान दो, जब निशांत ने अपने ब्लॉग के माध्यम से एक विवाद की प्रकाशित कहानी को उजागर करने की कोशिश की। सभी कहानियों की तरह, इसमें भी दो पक्ष थे - प्रतिष्ठित कंपनी द्वारा स्वतंत्रता संघर्ष सेनानी की जमीन पर अवैध रूप से कैपिटलिस्टिक संस्थान का निर्माण करने वाली कंपनी और दूसरा पक्ष था स्वतंत्रता सेनानी के परिवार का। जब मैंने अपने ब्लॉग पर इसे प्रकाशित किया, तो मुझे कैसे और क्या दिखाना होगा, इसका फैसला मेरे पत्रकारिता के सिद्धांतों पर निर्भर करता था। मैंने दोनों पक्षों के कथन सुने, तथ्यों की जांच की, और फिर उजागर करने का निर्णय लिया। ऐसा नहीं हो सकता है कि सभी पत्रकार या समाचार चैनल अपने पत्रकारिता के सिद्धांतों को सम्मानित करें। इसलिए, हमें इस बारे में सोचने की ज़रूरत है कि क्या हम साबित कर सकते हैं कि भारतीय समाचार चैनल पक्षपाती हैं।
जब आप एक समाचार चैनल को देखते हैं, तो आप अक्सर एक किस्म की भाषा, प्रस्तुति शैली और खबरों का चयन देखते हैं जो उनके दर्शकों की वरीयताओं, विचारधाराओं और मान्यताओं को प्रतिबिंबित करता है। इसे 'पक्षपात' कहा जा सकता है, लेकिन कुछ लोग इसे 'संवेदनशील पत्रकारिता' कहते हैं। मैं आपको एक उदाहरण से समझाऊंगा। पिछले साल, एक प्रमुख समाचार चैनल ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें एक प्रमुख राजनीतिक दल के सदस्य के कर्मचारी के कार्यालय में हुए एक हिंसक हमले की जांच की गई थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि हमला एक विपक्षी दल के सदस्यों द्वारा किया गया था।
हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि कई समाचार चैनल अपनी स्थितियों, विचारधाराओं और मान्यताओं को प्रबंधित करने के लिए अपने समाचार कवरेज को तराजू में डालते हैं। हालांकि, क्या यह फिर भी इन्हें 'पक्षपाती' बनाता है? यह सवाल है जिसे हमें खुद का जवाब देना होगा। क्या हम इन्हें 'पक्षपाती' इसलिए कहते हैं क्योंकि वे हमारी अपनी विचारधारा, मान्यताएं, या मानसिकता के अनुसार नहीं रपोर्ट करते? या क्या हम इसलिए उन्हें 'पक्षपाती' कहते हैं क्योंकि वे खबरों को दिखाने के तरीके में अस्थिर होते हैं - वे कभी-कभी एक पक्ष की ओर झुकते हैं, और कभी-कभी दूसरी ओर। मेरी राय में, मीडिया के पक्षपात को खोजने का एकमात्र तरीका यह है कि हम उनकी रिपोर्टिंग, उनके तरीके, और उनके खबरों की प्रस्तुति को समझने की कोशिश करें।
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